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द्रविड़ नाडु क्या है? जानें इसका संपूर्ण इतिहास

द्रविड़ नाडु के विषय में जानने के लिए इसके इतिहास को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण बन जाता है। आज के आर्टिकल में हम द्रविड़ नाडु से संबंधित संपूर्ण जानकारी आपके समक्ष प्रसतुत करेंगे तथा इससे होने वाले संबंधित परिणामों के बारे में चर्चा करेंगे। आइए जानते है द्रविड़ नाडु के बारे में –

द्रविड़ नाडु क्या है जाने पूरी जानकारी

द्रविड़ नाडु दक्षिण भारत द्वारा मांग किया गया एक संप्रभु राज्य(जो अपने आंतरिक तथा बाह्य मामलो में निर्णय लेने में स्वतंत्र हो।) का प्रस्तावित नाम है। दरअसल दक्षिण भारत के लोगो द्वारा द्रविड़ नाडु नामक नए संप्रभु राज्य बनाने की मांग काफी समय पहले की गई थी। इसकी मांग सर्वप्रथम जस्टिस पार्टी द्वारा की गई थी जिसका नेतृत्व सीएन अन्नादुरई, थंथई पेरियार तथा द्रविड़ मुनेत्र कड़गम द्वारा की गई थी । द्रविड़ नाडु में दक्षिण भारत के द्रविड़ भाषी समूहों का समर्थन रहा है। द्रविड़ नाडु आंदोलन 1940 से 1960 तक काफी सक्रिय रहा है।

द्रविड़ नाडु का इतिहास

  • आरंभ में द्रविड़ नाडु सिर्फ तमिल भाषी क्षेत्रों तक सीमित था परंतु जब ये 1940 से 1960 के दशक में सक्रिय हुआ तो ये अन्य राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश ,केरल,तेलंगाना,कर्नाटक में भी विस्तृत हुआ।
  • जवाहरलाल नेहरू द्वारा इसको अलागवाद का विषय बताते हुए नकारा गया और ये तथ्य बताया कि एक संप्रभु देश के मध्य एक संप्रभु राज्य की स्थापना होना किसी भी राष्ट्र के लिए हितकारी नहीं है।
  • ऐसा कहा जाता है कि द्रविड़ नाडु आंदोलन वास्तव में हिंदी भाषा को संपूर्ण देश में अनिवार्य बनाने के लिए दक्षिण भारतीय द्वारा की गई प्रतिक्रिया थी। दक्षिण भारत के लोग इस बात से संतुष्ट नहीं थे कि और अपनी तमिल भाषा के समर्थन करते हुए तमिल नाडु या द्रविड़ नाडु के रूप में एक संप्रभु राज्य चाहते थे।

द्रविड़ नाडु के रूप में नए राज्य की मांग करने के प्रमुख कारण

द्रविड़ नाडु आंदोलन के संस्थापक मूल रूप से पेरियार को माना जाता है। उन्होंने निम्नलिखित कारणों से द्रविड़ नाडु के रूप में नए राज्य की मांग पर अधिक बल दिया।

  • द्रविड़ नाडु के रूप में नए राज्य की मांग के लिए एक महत्वपूर्ण कारण भाषाई कारण माना जाता है।
  • जब भारतीय संविधान द्वारा हिंदी भाषा को विशेष दर्जा देती हुआ शिक्षण में अनिवार्य बना दिया गया था तब दक्षिण भारतीय लोग तथा पेरियार इस बात से काफी नाखुश थे तथा अपनी तमिल भाषा का वर्चस्व बनाए रखते हुए इसे ही शिक्षण के लिए प्रयोग में लाना चाहते थे।
  • दक्षिण भारत के आंदोलन का नेतृत्व करने वालो का मानना था कि उनका भारतीय अर्थव्यवस्था में उत्तर भारत की तुलना में योगदान काफी अधिक है फिर भी उन्हें मिलना वाला आशत्तीत लाभ काफी कम है।

उम्मीद करते है कि द्रविड़ नाडु से संबंधित ये आर्टिकल आपको पसंद आया हो।

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