इस तरह के गेंहू की खेती कर किसान कूट रहे चांदी, 100 रुपए प्रतिकिलो बिक रही गेंहू की ये किस्म
इस तरह के गेंहू की खेती कर किसान कूट रहे चांदी, 100 रुपए प्रतिकिलो बिक रही गेंहू की ये किस्म

इस तरह की गेहूं की खेती कर चांदी कर रहे किसान चांदी, 100 रुपए किलो बिक रहे गेहूं की यह कहानी बरसात के मौसम में शुद्ध देसी चना और गेहूं पैदा करने के लिए जैसलमेर पहले से ही मशहूर है. लेकिन इस बार जैसलमेर में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने वाली संस्था अथरन जावेस ने स्थानीय युवा किसान अमिताभ बलूच के साथ मिलकर दूसरी बार जेंहू के प्राचीन देसी मिट्टी के मोती का घेराव किया है, जो अब पकडऩे को तैयार है।

अथरन बायोलॉजी के निदेशक पार्थ दुनिया ने बताया कि गेहूं एक सामान्य अनाज है, जिसके बिना भोजन की कल्पना अधूरी है. आधी सदी पहले दर्ज किए जाने तक, पूरे भारत में गेहूँ की 37 से अधिक देशी प्रजातियाँ उगाई जाती थीं। जैसलमेर के युवा अजूबे किसान अमिताभ बलूच से संपर्क करने पर उन्होंने बीहाइव फिजिक्स के जरिए सिंध और पंजाब क्षेत्र के प्राचीन देसी सोनामोती बीज बोए।
अमिताभ बलोच ने इस प्राचीन देशी स्वाद को खाने में मिलाकर दूसरी बार जैसलमेर में बोया।
उनका कहना है कि गेहूं के इस देसी लावे के दाने छोटे और गोल होते हैं, लगभग बुखार जैसे। उपमा आधुनिक प्रकंदों के लिए सामान्य प्रत्यय है जिसमें उच्च मात्रा में एसिड, खनिज और प्रोटीन होते हैं। फैटी एसिड गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत फायदेमंद होता है और यह बालों को भी मजबूत बनाता है। इसके अलावा इसमें ग्लूकोज और ग्लाइसेमिक तत्व भी कम होते हैं।
जिससे देश-विदेश में रहने वाले युवाओं में इस देसी की काफी डिमांड है। वह खुद लगातार दूसरे वर्ष गेहूं की इस प्राचीन एशियाई दुर्घटना के बारे में कुड़कुड़ाते हैं और निष्कर्ष निकालते हैं कि इसके जैसलमेर स्तंभ में भी अच्छी मात्रा में जैविक और रासायनिक उर्वरक हो सकते हैं।
वर्ष 2021-22 में एक किलो बीज से औसतन 20 किलो उत्पादन प्राप्त हुआ। जो इस बार औसतन 25 किलो तक पहुंच गया है। अमिताभ बलोच को उम्मीद है कि जैसलमेर में इस पुराने देसी मुआवजे के गेहूं उत्पादन से किसानों को अनाज के साथ आमदनी भी होगी.