Noise Pollution: कैसे घातक सिद्ध होता ध्वनि प्रदूषण, समुद्री जीवों के लिए । एक नई आपदा की राह पर अग्रसर धरती
ध्वनि प्रदूषण मनुष्य के लिए अत्यंत हानिकारक है इससे मनुष्य स्वभाव से चिड़चिड़ा हो जाता है तो वहीं ये जीव जंतुओं के लिए भी घातक सिद्ध होता है।शोर पर नियंत्रण आवश्यक है ताकि धरती को एक और आपदा से बचाया जा सके और सभी जीवों के जीवन की रक्षा की जा सके। विज्ञानियों का मानना है कि बढ़ते ध्वनि प्रदूषण ने जहाजों और व्हेल जैसे जीवों के बीच टकराव बढ़ा दिए हैं।

ध्वनि प्रदूषण से होने वाले संभावित नुकसान
मानव कान अनुश्रव्य और पराश्रव्य ध्वनि को सुनने में अक्षम होते हैं। इसी कारण ध्वनि प्रदूषण के चलते उनमें तेज आवाज से बहरेपन के साथ-साथ उच्च रक्तचाप और हृदय रोगों का खतरा भी बढ़ जाता है। हालांकि, ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव मानव तक ही सीमित नहीं, बल्कि यह स्थलीय और समुद्री जीवों की एक विस्तृत शृंखला के लिए भी विनाशकारी है। यह किसी जानवर की सुनने की क्षमता को कम करने से लेकर उनके व्यवहार में परिवर्तन और जीवन में अड़चनें उत्पन्न करने के लिए भी उत्तरदायी है। ध्वनि प्रदूषण समाज को मानसिक रूप से अपंग बना सकता है।
समुद्री जीवों के लिए भी बड़ा खतरा है ध्वनि प्रदूषण
शोर के कारण मनुष्यों की तरह जानवरों की श्रवण क्षमता भी कमजोर होती है। जानवरों की प्रजनन क्रिया में भी शोर बाधक सिद्ध हुआ है। बढ़ता शोर सिर्फ स्थलीय जानवरों को ही प्रभावित नहीं करता, बल्कि समुद्री जीवों के लिए भी बड़ा खतरा है। समुद्री जीवों के बीच संचार का एकमात्र माध्यम ध्वनि है। इसका इस्तेमाल संवाद करने, रास्ता दिखाने, भोजन खिलाने और साथी खोजने के लिए किया जाता है। मगर जहाजों, तेल ड्रिलों और भूकंपीय परीक्षणों आदि ने शांत समुद्री वातावरण को अशांत बना दिया है। इससे समुद्री जीवों विशेषकर स्तनपायी जीवों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अत्यधिक शोर के चलते समुद्री जीवों के कान खराब हो रहे हैं। उन्हें चोट लग रही है। उनका जीवन खतरे में पड़ रहा है। शोर से उत्पन्न उच्च कंपन समुद्री जीवों को असहज बना देता है।
वैज्ञानिकों द्वारा दी गई टिप्पणियां
विज्ञानियों का मानना है कि बढ़ते ध्वनि प्रदूषण ने जहाजों और व्हेल जैसे जीवों के बीच टकराव बढ़ा दिए हैं। अंतरराष्ट्रीय व्हेल आयोग के अनुसार, 2007 के बाद से दुनियाभर में जहाजों और व्हेल के बीच कम से कम 1200 टकराव दर्ज किए गए हैं। ऐसे में स्थलीय और समुद्री जीवों को ध्वनि प्रदूषण की मार से बचाने के लिए कड़े प्रयत्न करने होंगे। शोर पर नियंत्रण इसलिए भी आवश्यक है, ताकि धरती को एक और आपदा से बचाया जा सके और सभी जीवों के जीवन की रक्षा की जा सके।
किस तरह शोर से छोटे जीवो को खतरा उत्पन्न हो सकता है?
सभी छोटे बड़े जीव-जंतु सांकेतिक भाषा के तौर पर विभिन्न ध्वनियों का उपयोग करते हैं। इनमें रास्ता खोजना, भोजन तलाशना, साथियों को आकर्षित करना और शिकारियों से बचना शामिल है, लेकिन ध्वनि प्रदूषण उनके लिए यह सब मुश्किल बना देता है। ध्वनि की उच्च तीव्रता के संपर्क में आने से जीवों की जीवनशैली बाधित होती है। जीवित रहने की उनकी नैसर्गिक क्षमता भी प्रभावित होती है। एक-दूसरे से संवाद करने में असमर्थता के कारण जानवरों के व्यवहार में बदलाव आने लगता है। अवांछित ध्वनि सुनाई देने पर डर जाते हैं। उनकी धड़कनें बढ़ जाती हैं। वस्तुत: शोर से उत्पन्न कंपन छोटे जीवों के लिए बड़ा खतरा है। शोर पर नियंत्रण पाने के लिए सरकार को जल्द ही कुछ नए कानून अथवा नियमो का सहारा लेना अत्यंत आवश्यक है।